चारों वेदों में ऐसा कहीं नहीं लिखा जिससे अनेक ईश्वर सिद्ध हों।
3.
फलत: बुद्धि आदि आत्म विशेष गुणों से युक्त आत्मविशेषरूप सगुण ईश्वर सिद्ध होता है।
4.
जिन तर्कों के आधार पर या जिन अनुमानों अथवा साधनाविधियों से वेदांत की कल्पना के अनुरूप ईश्वर सिद्ध या असिद्ध होता है उनके आधार पर कोई भी पाठक या श्रोता न्याय में वर्णित ईश्वर के स्वरूप को नहीं समझ सकता हैं।